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राष्ट्र नीति का एक ही लक्ष्य, संकीर्ण राजनीति से परे व्यापक राष्ट्रहित- नंदकुमारसिंह चौहान

11/08/2017
भोपाल। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष व सांसद श्री नंदकुमारसिंह चौहान ने कहा कि भारत छोड़ो आंदोलन1942 में अचानक अंग्रेजों ने आंदोलन का आव्हान करने वाले नेताओं को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नेतृत्व में गिरफ्तार कर लिया था। तब गांधीजी ने कहा था कि हर भारतीय स्वयं नेतृत्व करे अंग्रेज भारत छोड़ने को विवश हो जायेंगे। नियति इसी के अनुरूप हुई और पांच वर्षो के संघर्ष के बाद अंग्रेजों ने क्विट इंडिया का जवाब भारत छोड़कर दिया। भारत को आजादी मिल गयी। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भारत छोड़ो आंदोलन के स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों का संसद भवन में पुण्य स्मरण करते हुए उसी जज्बाती संदर्भ का स्मरण देश की 1 अरब 33 करोड़ जनता को कराते हुए सामयिक आव्हान किया है कि हमारी राष्ट्र नीति का एक ही लक्ष्य होगा कि 2022 तक देश से भ्रष्टाचार, गरीबी, पिछड़ेपन, भाई भतीजावाद निरक्षरता को देश निकाला दे दिया जायेगा, लेकिन इसके लिए देश की जनता को अपनी सियासत राष्ट्रनीति पर समर्पित करना होगी। संकीर्ण राजनीति से परे हटकर व्यापक राष्ट्रहित में सोचना होगा।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र निर्माण के अनुष्ठान की सफलता के लिए समावेशी सोच की आवश्यकता रेखांकित करते हुए संसद भवन में आयोजित भारत छोड़ो आंदोलन की 75 वी वर्षगांठ को स्मरणीय बनाने के लिए सभी दलों से मिलजुलकर राष्ट्र चिंतन का आव्हान करते हुए उम्मीद जतायी है कि कुछ समय हम दलगत खुदगर्जी से मुक्त होकर भारत का व्यापक हितचिंतन करें। ऐसे ऐतिहासिक मौके पर कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी की तकरीर न तो प्रभाव छोड़ पायी और न ही अवसर के अनुरूप रही।
श्री चौहान ने कहा कि गांधी जी ने जिस तरह 1942 में करो या मरो का आव्हान किया था और देश ने सफलता पायी उसी भावना की अपेक्षा करते हुए प्रधानमंत्री का यह कथन कि हमारा एक ही संकल्प हो कि राष्ट्रहित में लक्ष्य केन्द्रित होकर कत्र्तव्य में जुटेंगे और देश की समग्र प्रगति तक जुटें रहेंगे। काम को पूरा करके ही दम लेंगे। श्री नरेन्द्र मोदी ने याद दिलाया कि दलीय राजनीति से राष्ट्र नीति बड़ी और महान है जो हमें राजनीति करने का अवसर देती है। जब राष्ट्र प्रगति पथ पर अग्रसर होगा तभी तो हम अपनी राजनीति को भी सरसब्ज कर सकेंगे। सबका साथ सबका विकास हमारी प्रतिबद्धता हो। इसके विपरीत आचरण करके हम न तो गंतव्य पर पहंुच सकते है और न लक्ष्य के प्रति अपनी निष्ठा प्रमाणित कर सकते है। देश की स्वतंत्रता राष्ट्र की अखण्डता अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए हमें एकजुट होकर संकीर्ण राजनीति के दायरे से उपर उठकर सोचने की आवश्यकता है। प्रधानमंत्री के आव्हान में राष्ट्र साधना का जो मर्मस्पर्शी समर्पण भाव निहित है कौन सहृदय राष्ट्रप्रेमी अभिभूत नहीं होगा ?

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