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सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की प्रतिबद्धता जगाने में न्यायालय का फैसला मील का पत्थर बनेगा- विष्णुदत्त शर्मा

Byaum

Jul 28, 2017

28/07/2017
भोपाल। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश महामंत्री श्री विष्णुदत्त शर्मा ने कहा कि राष्ट्रीय प्रतीकों पर गर्व करना परम सौभाग्य और गौरव की बात है लेकिन देश में संकीर्ण स्वार्थ के सियासतदारों और अवसरवादियो ने समय-समय पर कुछ ऐसी परिस्थितियां निर्मित की गयी कि राष्ट्रीय गान का मुद्दा सियासत के तर्क-वितर्क से गुजरा और न्यायालय तक पहंुचा। देर आयत दुरूस्त आयात मद्रास हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय गीत पर मोहर लगाते हुए कहा है कि स्कूल, कालेज सहित सरकारी संस्थाओं में एक दिन अवश्य ही वंदे मातरम का समूहिक गायन कराया जाना चाहिए। मद्रास उच्च न्यायालय के निर्णय के बाद स्थिति बिलकुल स्पष्ट हो गयी है और बाद विवाद की कोई गुंजाईश नही रह गयी है।
उन्होंने कहा कि न्यायालय ने दो टूक शब्दों में कहा है कि देशभक्ति हर नागरिक का आभूषण है। देश, वतन हमारी मातृभूमि है। राष्ट्रगीत गायन से हम अपने वतन के पति आस्था व्यक्त करते है। इसके गायन पर तर्क वितर्क की स्थिति पैदा करना दुखद है। यह भी देखा जाना चाहिए कि राष्ट्र के प्रति अपनी आस्था व्यक्त करते हुए नागरिक धर्म के निर्वाह में गौरवपूर्वक अपनी नुमाइन्दगी महसूस करें। हम किसी की राष्ट्रभक्ति पर संदेह न करें।
श्री शर्मा ने कहा कि गीत गायन की अनिवार्यता थोपना भी अच्छा नहीं है। न ही इस मामले में टकराव की कोई जगह है। जहां तक इसमें साम्प्रदायिकता की गंध आने की बात है तो सच्चाई यह है कि दुनिया के महान संगीतकार ए.आर. रहमान ने वंदे मातरम गायन को न केवल पाक माना है अपितु उन्होंने भारी तन्मयता के साथ इस राष्ट्रगान की धुन बनाई है संगीत का तर्जुमा किया है। उन्होंने कहा कि उचित तो यही होगा कि सभी समुदायों के नागरिक राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान करे। राष्ट्रगान को लोकप्रिय बनाए। अगर राष्ट्रीय प्रतीकों के प्रति स्वयं स्र्फूत भावनात्मक अभिव्यक्ति की जाती है तो सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की भावना स्थायी परिणाम देगी जिसका कोई विकल्प नहीं है।

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