भोपाल : शुक्रवार, नवम्बर 11, 2016
मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि भारत की संस्कृति और लोक जीवन में आनंद की बहुलता और अपनी परंपराओं से भावनात्मक लगाव है। पश्चिमीकरण की अंधभक्ति के कारण आधुनिक जीवन आनंद और जीवन्तता से विमुख हो गया है। श्री चौहान आज यहाँ विधानसभा परिसर में 12 नवम्बर से शुरू हो रहे तीन दिवसीय “लोक मंथन” कार्यक्रम के अंतर्गत प्रदर्शनी का शुभारंभ कर रहे थे। आयोजन संस्कृति विभाग, प्रज्ञा प्रवाह और भारत भवन के सहयोग से हो रहा है। लोक मंथन में “राष्ट्र सर्वोपरि” के दर्शन में विश्वास रखने वाले मूर्धन्य विचारक भाग ले रहे हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत एक महान एवं प्राचीन राष्ट्र है। पाँच हजार सालों का इसका ज्ञात इतिहास है। जब भारत की सभ्यता चरमोत्कर्ष पर थी तब कई राष्ट्रों का जन्म भी नहीं हुआ था। तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालय यहाँ अस्तित्व में थे।
श्री चौहान ने कहा कि भारत की लोक संस्कृति की बुनावट परंपराओं एवं जीवन मूल्यों से हुई है। यह अदभुत, अनूठी और विविधतापूर्ण है। उन्होंने कहा कि दुनिया के विकसित देशों ने भौतिक प्रगति की लेकिन जीवन का आनंद खो बैठे। केवल पश्चिम की सोच, सभ्यता और संस्कृति का पालन करना गलत है। उन्होंने कहा कि भारतीय लोक जीवन सकारात्मकता और जीवन्तता से समृद्ध है। यह वर्तमान में विश्वास करता है। इसका अपना जीवन दर्शन है। अपनी जीवन दृष्टि है और उत्सवधर्मिता है। यहाँ मृत्यु का भी उत्सव मनाया जाता है।
श्री चौहान ने कहा कि ‘लोक मंथन’ में जो विचार मंथन होगा उसे राज्य सरकार आगे बढ़ाने का काम करेगी। प्रमुख सचिव संस्कृति श्री मनोज श्रीवास्तव ने लोक मंथन कार्यक्रम एवं प्रदर्शनी की अवधारणा की जानकारी दी।
विधानसभा अध्यक्ष श्री सीतासरण शर्मा एवं मुख्यमंत्री श्री चौहान और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती साधनासिंह ने वाग्देवी की प्रतिमा के समक्ष पारंपरिक कलश की स्थापना कर दीप प्रज्वलित किया और जनजातीय पारंपरिक अनुष्ठान के अनुसार तुलसी पूजा की। इस अवसर पर सांसद श्री आलोक संजर, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबोले, प्रज्ञा प्रवाह के श्री सदानंद सप्रे उपस्थित थे।
क्या है अनूठी प्रदर्शनी में ?
‘‘लोकमंथन’’ के आयोजन स्थल विधानसभा परिसर में लगाई गई प्रदर्शनी कई अर्थों में अनोखी है। प्रदर्शनी को भारतीय परम्परा, संस्कृति, पर्यावरण, कला और जनजातीय जीवन के प्रतिबिम्ब के रूप में तैयार किया गया है। यह प्रदर्शनी आम लोगों के लिये तीनों दिन खुली रहेगी।
प्रदर्शनी पुरुष (मानव), प्रकृति और भारतीय परम्परा की त्रिवेणी है। प्रदर्शनी स्थल को आठ भागों में विभाजित किया गया है। मध्य में ब्रम्ह स्थान है, पानी के बीच में कमल खिले हुए हैं। प्रदर्शनी में चित्रों के साथ जनजातीय परम्परा, कला और संस्कृति को भी दर्शाया गया है। स्थल पर प्रवेश करते ही अर्श का भाग है, जिसमें सनातन संस्कृति से जुड़े हुए चित्रों को प्रदर्शित किया गया है।
दूसरे हिस्से में शब्द पर केन्द्रित चित्र हैं। शब्दों का महत्व दर्शाया गया है। तीसरा हिस्सा स्थापना का है, जिमसें धर्म, विज्ञान, संस्कृति और अन्य विषयों को समझाया गया है। चौथा भाग उत्सव पर केन्द्रित है। जीवन में उत्सव की परम्परा को भी यहाँ प्रदर्शित किया गया है, जिसमें जन्मोत्सव से लेकर मृत्यु तक की यात्रा का विवरण है। पाँचवें भाग में शौर्य को जीवन की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण बताया गया है। छठवाँ हिस्सा विसर्जन का है। लोक परम्परा शिल्प में नर्मदा नदी की उत्पत्ति से सम्बन्धित कहानी को चित्र के रूप में दर्शाया गया है।