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डॉ.अंबेडकर के विचारों और आदर्शों को सही स्वरूप में समझने की आवश्यकता – मंत्री पवैया

डॉ.अंबेडकर के आदर्श अपने जीवन में उतारें – मंत्री श्री जैन, डॉ.अंबेडकर का चिन्तन दूरगामी – सांसद प्रो.मालवीय, डॉ.अंबेडकर पर आधारित राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन उज्जैन | 20-मई-2017
विक्रम विश्वविद्यालय के स्वर्ण जयन्ती सभागृह में शनिवार को संविधान की संरचना एवं सामाजिक उत्थान में डॉ.भीमराव अंबेडकर के योगदान पर आधारित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन कार्यक्रम आयोजित किया गया। संगोष्ठी का प्रायोजन भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद नईदिल्ली द्वारा किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उच्च शिक्षा, लोक सेवा प्रबंधन एवं जनशिकायत निवारण मंत्री मध्य प्रदेश शासन श्री जयभानसिंह पवैया और ऊर्जा मंत्री श्री पारस जैन थे। विशिष्ट अतिथि के रूप में लोकसभा सांसद प्रो.चिन्तामणि मालवीय और उज्जैन दक्षिण विधायक डॉ.मोहन यादव कार्यक्रम में सम्मिलित हुए। दिल्ली के दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर श्री एसआर भट्ट ने सारस्वत अतिथि के रूप में कार्यक्रम में शिरकत की।
कार्यक्रम के पूर्व मौजूद अतिथियों द्वारा स्व.श्री अनिल माधव दवेजी के चित्र के समक्ष पुष्पांजली अर्पित की गई। इसके बाद विक्रम विश्वविद्यालय के कुलगान का गायन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि मंत्री श्री जयभानसिंह पवैया ने अपने उद्बोधन में कहा कि वर्तमान में डॉ.अंबेडकर के विचारों और आदर्शों को सही स्वरूप में समझने की आवश्यकता है। एकाधिकार जमाना मनुष्य की शुरू से ही प्रकृति में रहा है और इसी कारण समाज में अस्पृश्यता और कुरीतियों का चलन बढ़ा। इतिहास में भी हम लोगों में एकता व समरसता की कमी के कारण ही विदेशी आक्रमणकारियों से हम पराजित हुए और उन्होंने हमारे देश पर शासन किया। समाज में अस्पृश्यता से बड़ा कोई अधर्म नहीं है। ये कुरीति मनुष्य को मनुष्य से अलग करती है, इसलिये इसे खत्म करने की जरूरत थी। ऐसी कुरीतियों और अस्पृश्यता के कलंक को धोने में डॉ.अंबेडकर का महान योगदान रहा है।
मंत्री श्री पवैया ने कहा कि बाबा साहब अंबेडकर का नाम स्वर्णिम अक्षरों में इतिहास में दर्ज किया गया है, जो अनन्तकाल तक लोगों के स्मृति पटल पर अंकित रहेगा। बाबा साहब अंबेडकर के लिये राष्ट्र सर्वोत्तम था। उनका कहना था कि समाज में स्वतंत्रता सामाजिक समरसता के बिना संभव नहीं है। प्रेम के बिना आपसी भाईचारा और बंधुत्व उत्पन्न नहीं हो सकता है, इसलिये हम सबको अपने आपको भारत माता की सन्तान मानना होगा। हमें बाबा साहब अंबेडकर के इन्ही महान विचारों को अंगीकार करना होगा। दो दिवसीय आयोजित इस संगोष्ठी में बाबा साहब के आदर्शों को समझने का एक बेहतरीन प्रयास किया गया है और यह हमारे समाज को एक सही दिशा प्रदान करेगी। उन्होंने कहा कि संगोष्ठी में जो पेपर्स प्रस्तुत किये गये हैं, उनका प्रकाशन किया जाये और जनमानस में व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाये।
ऊर्जा मंत्री श्री पारस जैन ने अपने उद्बोधन में कहा कि डॉ.भीमराव अंबेडकर के आदर्शों को हमें अपने जीवन में उतारने का प्रयास करना चाहिये। डॉ.अंबेडकर सामाजिक समरसता के पक्षकार थे। उनके आदर्शों पर चलकर हमें अपने जीवन को आगे बढ़ाने का कार्य करना चाहिये। दो दिवसीय इस संगोष्ठी में डॉ.अंबेडकर के विचारों और आदर्शों पर देश के अलग-अलग कोने से आये विद्वानों द्वारा अपने विचार व्यक्त किये गये। इस संगोष्ठी में वैचारिक मंथन भी किया गया है जो कि हर्ष और गौरव का विषय है। मंत्री श्री जैन ने अपनी ओर से संगोष्ठी के सफल आयोजन पर शुभकामनाएं दीं।
लोकसभा सांसद प्रो.चिन्तामणि मालवीय ने कहा कि डॉ.अंबेडकर का चिन्तन दूरगामी था। यह युग परिवर्तन का युग है। डॉ.अंबेडकर की विचारधारा ने पूरे देश को प्रभावित किया है। इस संगोष्ठी के माध्यम से बाबा साहब के जीवन के विभिन्न आयामों पर विचार-विमर्श किया गया। डॉ.अंबेडकर नि:सन्देह अपने युग के एक महान विद्वान थे। उन्होंने जीवन के हर पक्ष पर लेखन के माध्यम से अपने विचार व्यक्त किये। वे एक महान दार्शनिक, अर्थशास्त्री और तर्कशास्त्री थे। इसके अलावा उन्होंने इतिहास और राजनीति पर भी बहुत सारी रचनाएं की हैं। उनका जीवन दर्शन बहुत गहरा और गंभीर था। वे स्वतंत्रता, समानता, भातृत्व व न्याय के पक्षकार थे। उनका जीवन दर्शन व्यवहारवादी था। उन्होंने अपने दर्शन में भौतिक तत्वों को महत्व दिया और धर्म की नवीन व्याख्या की।
बाबा साहब अंबेडकर ने सभी को ये बताया कि धर्म में नैतिकता का होना बेहद आवश्यक है। उनके द्वारा रचित किताबें आज भी प्रासंगिक हैं। बाबा साहब अंबेडकर ने पूरे देश में समानता और समरसता की स्थापना की।
दिल्ली के दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर श्री एसआर भट्ट ने कहा कि इस संगोष्ठी में पिछले दो दिनों से बाबा साहब अंबेडकर के समग्र जीवन दर्शन पर विचार किया गया है। संगोष्ठी के पीछे मुख्य उद्देश्य यह था कि बाबा साहब के आदर्शों को सही स्वरूप में जनता के समक्ष प्रस्तुत किया जाये। उनकी समग्रवादी दृष्टि को आमजन के समक्ष प्रस्तुत करने के उद्देश्य से यह संगोष्ठी की गई। मूल अधिकारों से वंचित मानवों के उत्थान के लिये उन्होंने बहुत प्रयास किये। श्रमिक वर्ग के लोगों के लिये भी डॉ.अंबेडकर का योगदान अविस्मरणीय रहेगा।
उल्लेखनीय है कि इस दो दिवसीय संगोष्ठी में 10 तकनीकी सत्र हुए, जिनमें लगभग 500 पंजीयन किये गये। देश के विभिन्न हिस्सों से आये प्रोफेसर और रिसर्च स्कॉलर ने अपने शोधपत्र इस संगोष्ठी में प्रस्तुत किये। कार्यक्रम में मौजूद अतिथियों को स्व.श्री अनिलमाधव दवे की पुस्तक ‘शिवाजी स्वराज’ भेंट की गई। कार्यक्रम का संचालन डॉ.जफर महमूद ने किया और अन्त में आभार डॉ.हेमन्त नामदेव ने व्यक्त किया।

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