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आईटीएटी का अनुकूल फैसला, टाटा शिक्षा और विकास ट्रस्ट को मिली 220 करोड़ रुपये की छूट आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण (आईटीएटी) की खंडपीठ ने 24 जुलाई को टाटा शिक्षा और विकास ट्रस्ट को बड़ी राहत देते हुए आयुक्त आयकर (सीआईटी) के उस अपील आदेश के खिलाफ ट्रस्ट द्वारा की गई अपील में उसके पक्ष में फैसला सुनाया है जिसमें कर विभाग द्वारा 220 करोड़ रुपये से अधिक राशि की मांग की गई थी। इस खंडपीठ में आईटीएटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति पीपी भट्ट भी शामिल थे। आईटीएटी ने इसके साथ ही बिना किसी न्यूनतम भुगतान के इस मांग के मामले पर भी रोक लगा दी है।
यह मामला भारतीय विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति प्रदान करने हेतु अमेरिका के कॉर्नेल विश्वविद्यालय में एक एंडोमेंट फंड बनाने के लिए ट्रस्ट द्वारा खर्च की गई धनराशि और ‘टाटा हॉल’ नामक एक कार्यकारी भवन के निर्माण के लिए हार्वर्ड बिजनेस स्कूल को दी गई वित्तीय सहायता के बारे में आकलन वर्ष 2011-12 और 2012-13 से संबंधित है। इसने वर्ष 2011-12 में 197.79 करोड़ रुपये और वर्ष 2012-13 में 25.37 करोड़ रुपये दान किए थे।
यह विवाद तब शुरू हुआ जब वर्ष 2018 में लोकसभा की लोक लेखा समिति (पीएसी) ने इस मामले की जांच करने की जरूरत बताई थी क्योंकि उसका यह मानना था कि प्रत्यक्ष कर निकाय द्वारा दी गई छूट आयकर अधिनियम का उल्लंघन है।
इस मामले का समापन करते हुए आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण (आईटीएटी) ने शुक्रवार को कहा कि अपील के अन्य सभी आधार ‘व्यर्थ, अव्यावहारिक और निष्फल’ होंगे। आईटीएटी ने कहा, ‘हमने इस मामले में फैसला कर निर्धारिती के पक्ष में सुनाया है, इसलिए अपील के इस आधार को अनुमति दे दी है। हम कर निर्धारिती की याचिका को बरकरार रखते हैं, और छूट के दावे की नामंजूरी को निरस्त करते हैं।’
अपीलीय न्यायाधिकरण ने अपने आदेश में यह भी कहा कि, ‘…… यह पूरी तरह से परिहार्य या निरर्थक मुकदमा है जो न केवल न्यायिक फोरम के समक्ष विचाराधीन गंभीर मुकदमों की राह में रोड़े अटकाता है, बल्कि परोपकारी निकायों जैसे कि हमारे समक्ष मौजूद कर निर्धारिती के दुर्लभ संसाधनों को उन क्षेत्रों की तरफ मोड़ देता है जो समग्र समाज का कुछ भी भला नहीं करते हैं।’ न्यायाधिकरण ने उम्मीद जताई कि भारत सरकार द्वारा वृहद स्तर पर इस तरह की दूरदर्शी नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए जो सराहनीय काम किया जा रहा है उस पर फील्ड स्तर पर उत्पन्न होने वाली इस तरह की छिटपुट परिस्थितियों के कारण कोई आंच नहीं आने दी जाएगी, जिसे संबंधित अधिकारियों को संवेदनशील बना कर कम से कम किया जाना चाहिए। न्यायाधिकरण ने यह राय व्यक्त की कि, ‘कर प्रशासन के हर स्तर पर न्यायसंगत एवं समुचित दृष्टिकोण अपनाकर करदाता के अनुकूल माहौल बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए।’
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