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उपराष्ट्रपति ने लोगों से अनुरोध किया कि नई शिक्षा नीति के मसौदे को पढ़ें, विश्लेषण करें, उस पर चर्चा करें और जल्दबाजी में कोई निष्कर्ष न निकालें

नवाचारों के फलने-फूलने के लिए उद्योग और शिक्षा के बीच सहजीवी रिश्ता जरूरीः उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति ने विश्वविद्यालयों में बड़े स्तर पर अनुसंधान की संस्कृति को प्रोत्साहित करने का आह्वान किया
उन्होंने सरकार व कारोबार जगत से अनुरोध किया कि नवीन अनुसंधान को प्रोत्साहित व वित्त पोषित करने के लिए एक विशेष कोष बनाएं;

छात्रों को रोजगार योग्य कौशल से युक्त करने के लिए शिक्षा व्यवस्था में सुधार करें;

बदलती वैश्विक गतिशीलता और तकनीकी उन्नति हमारी शिक्षा व्यवस्था में प्रतिबिंबित हो ये सुनिश्चित करें;

उपराष्ट्रपति ने ‘शैक्षणिक गुणवत्ता में सुधार के लिए इंडस्ट्री एकेडमी वार्ता’ पर दो दिवसीय सम्मेलन का उद्घाटन किया
प्रविष्टि तिथि: 02 JUN 2019
उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू ने लोगों से अनुरोध किया कि नई शिक्षा नीति के मसौदे का अध्ययन करें, विश्लेषण करें, उस पर बहस व चर्चा करें और जल्दबाजी में किन्हीं निष्कर्षों पर न पहुंचें।

शिक्षा के केंद्रीय विषय बहुत अधिक महत्वपूर्ण हैं जिन पर सभी हितधारकों का ध्यान होना जरूरी है इस बात पर विचार करते हुए उपराष्ट्रपति महोदय ने कहा कि स्कूल बैगों का भार कम करना, खेलों को प्रोत्साहित करना, नैतिक मूल्य, वैज्ञानिकता और तार्किक तासीर विकसित करना, इतिहास और स्वतंत्रता सैनानियों के योगदान को छात्रों के मन में बैठाना स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा बन जाना चाहिए।

विशाखापट्टनम में आज भारतीय पैट्रोलियम एवं ऊर्जा संस्थान (आईआईपीई) द्वारा आयोजित ‘शैक्षणिक गुणवत्ता में सुधार के लिए इंडस्ट्री एकेडमी वार्ता’ (इंडस्ट्री एकेडमी इंटरैक्शन फॉर इम्प्रूवमेंट ऑफ क्वालिटी ऑफ एकैडमिक्स) विषय पर दो दिनों के सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए श्री नायडू ने आह्वान किया कि शिक्षा जगत और उद्योग जगत के बीच एक सहजीवी रिश्ता स्थापित किया जाए ताकि नवाचारों का ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र बनाया जा सके जो फले फूले और युवाओं के लिए रोजगार पैदा करे। इसे हासिल करने के लिए उन्होंने चाहा कि भारतीय उद्योग जगत इस संबंध में ज्यादा सक्रिय भूमिका अदा करते हुए शैक्षणिक संस्थानों के साथ एक मजबूत रिश्ता कायम करे।

श्री नायडू ने उद्योग और शिक्षा जगत से कहा कि हमारे विश्वविद्यालयों और अन्य महत्वपूर्ण शैक्षणिक संस्थानों में बड़े स्तर पर अनुसंधान की संस्कृति को स्थापित करने के लिए दीर्घकालिक गठजोड़ों पर ध्यान दें, न कि सीमित उद्देश्यों या एक बार की परियोजनाओं के लिए हाथ मिलाएं।

उपराष्ट्रपति महोदय ने कॉरपोरेट प्रतिष्ठानों को सुझाव दिया कि विशेष महत्व के क्षेत्रों की पहचान करें और उससे जुड़े डॉक्टरेट और पोस्ट-डॉक्टरेट अनुसंधानों को वित्त मुहैया करवाएं। उन्होंने उनसे ये भी अनुरोध किया कि देश की अर्थव्यवस्था और समाज को लाभ पहुंचाने और नवाचारों को बढ़ावा देने वाली अनुसंधान परियाजनाओं को धन मुहैया करवाने के लिए एक विशेष कोष या निधि स्थापित करें।

उच्च शिक्षा के संस्थानों से पढ़कर निकल रहे बहुत से छात्रों में रोजगार योग्य कौशल की कमी होती हैइस बात की ओर ध्यान दिलाते हुए श्री नायडू ने कहा कि इसी वजह से ऐसे ग्रैजुएट युवाओं को नौकरी दे रहे संगठनों को मजबूरन नौकरी के दौरान ही छह महीने से लेकर साल भर तक का प्रशिक्षण उन्हें देना पड़ता है।

उपराष्ट्रपति महोदय ने शिक्षा व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता पर बल दिया ताकि ग्रैजुएट बन कर निकल रहे छात्र संबंधित उद्योग या कृषि की जरूरतों को पूरा करने की कुशलताओं से युक्त हों या उनमें एक जोखिम लेने वाले उद्यमी का कौशल या योग्यता हो। उन्होंने कहा कि छात्रों को सिर्फ रोजगार योग्य ही नहीं होना चाहिए बल्कि उनमें जीवन कौशल, भाषा संबंधी कुशलता, तकनीकी कुशलताएं और उद्यम संबंधी कुशलताएं भी होनी चाहिए ताकि वे रोजगार पाने या स्व रोजगार करने में सक्षम हो सकें।

कोई भारतीय विश्वविद्यालय विश्व के 100 शीर्ष रैंकिंग वाले विश्वविद्यालयों में भी शामिल नहीं हो सका इस ओर इशारा करते हुए उपराष्ट्रपति महोदय ने विश्वविद्यालयों और शिक्षाविदों से अनुरोध किया कि वे इस सिलसिले में आत्मावलोकन करें और संबंधित मानकों को सुधारें।

महिलाओं के खिलाफ अत्याचारों और लैंगिक भेदभाव की घटनाओं पर अपनी चिंता जताते हुए श्री नायडू ने कहा कि हमारी शिक्षा व्यवस्था को सामाजिक रूप से जिम्मेदार नागरिक निर्मित करने चाहिए। उन्होंने लोगों की मानसिकता में परिवर्तन लाने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ और ‘स्वच्छ भारत’ जैसे कार्यक्रम लोगों के आंदोलनों में तब्दील होने चाहिए।

उपराष्ट्रपति ने यह भी कहा कि नीति आयोग ने पिछले साल ’75वें बरस में नए भारत के लिए रणनीति’ (स्ट्रैटजी फॉर न्यू इंडिया @ 75) का उद्घाटन किया जिसमें अब तक हुई तरक्की, बाधाओं और उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आगे की राह का ब्यौरा दिया गया था। उन्होंने कहा कि जैसे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कहा है – विकास को ‘जन आंदोलन’ में तब्दील होना होगा।

इसके अलावा जो अन्य महत्वपूर्ण सिफारिशें हैं उनमें – किसानों को ‘एग्रीप्रेन्योर्स’ बनाने की जरूरत, किसानों की आय बढ़ाने के तरीकों के तौर पर ‘जीरो बजट प्राकृतिक कृषि’ तकनीकों को मजबूती से आगे बढ़ाना, श्रम कानूनों का संपूर्ण रूप से संहिताकरण करना, खनिज पदार्थ अन्वेषण और लाइसेंसिंग नीति को पूरी तरह सुधारना, भारतीय कारोबार की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाना और नागरिकों के लिए ‘ईज़ ऑफ लिविंग’ यानी जीवन की आसानी को सुनिश्चित करना शामिल है।

भारत देश एक समय में ‘विश्वगुरु’ के तौर पर जाना जाता था इस बात पर विचार करते हुएश्री नायडू ने कहा कि भारत को एक बार फिर ज्ञान और नवाचार का वैश्विक केंद्र बनना होगा।

भारतीय पैट्रोलियम और ऊर्जा संस्थान विशाखापट्टनम के निदेशक प्रोफेसर वी. एस. आर. के. प्रसाद, आंध्रा यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रोफेसर जी. नागेश्वर राव, आईआईएम विशाखापट्टनम के निदेशक प्रोफेसर एम. चंद्रशेखर, एपीपीसीबी के अध्यक्ष श्री बी. एस. एस. प्रसाद, सीआईआई विशाखापट्टनम के अध्यक्ष श्री के. वी. वी. राजू, एपी चैंबर्स के अध्यक्ष श्री जी. संबासिवा राव, एनआरडीसी के सीएमडी डॉ. एच. पुरुषोत्तम और आईएआई के संयोजक प्रोफेसर पुलीपति किंग भी इस अवसर पर उपस्थित थे।
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courtesy

aum

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