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निवृत्तमान उपराष्ट्रपति की टिप्पणी पद की गरिमा के प्रतिकूल- डॉ. विजयवर्गीय

11/08/2017
भोपाल। भारतीय जनता पार्टी के मुख्य प्रदेश प्रवक्ता डॉ. दीपक विजयवर्गीय ने निवृत्तमान उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के बयान को देश के उच्च पद की गरिमा के प्रतिकूल बताते हुए कहा कि संवैधानिक पदों पर रहने वाले किसी भी शख्स से उम्मीद की जाती है कि वह मुल्क के हर नागरिक को समान दृष्टि से देखे और समाज को सामाजिक समरसता के लिए प्रेरित करे लेकिन लगता है कि हामिद अंसारी सत्ता की सीढ़ी से उतरते ही सियासत में अपनी जगह तलाशने में जुट गए। तत्कालीन खिलाफत आंदोलन के संस्कारों से मुक्त नहीं हो पाए। विरासत को जवाब ढोकर अपयश के आजीवन रहे है।
उन्होंने कहा कि देश की सच्चाई यही है कि सेकुलरवाद को जीवन पद्धति में रूपांतरित करने की दृष्टि से भारत से उम्दा दुनिया में न तो कोई देश है और हिन्दुओं जैसी न तो कोई दूसरी नस्ल सहिष्णु और उदार है लेकिन वास्तविकता को नजर अंदाज करके जिस तरह हामिद अंसारी साहब ने सच्चाई का गला घोंटा है उससे लगता है कि कहीं से अलगाववाद की भावना उन्हें विरासत में मिली है और वे दस वर्षो तक इस दूसरे नंबर के सर्वोच्च पद पर रहकर भी भूल नहीं पाए है।
डॉ. विजयवर्गीय ने कहा कि भारत में जिस तरह का सेकुलर ताना बाना है वह अन्यत्र मुस्लिम बहुल मुल्कों में भी संभव नहीं है। देश में श्री नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद तो अल्पसंख्यकों को मिलने वाली सुविधाओं में इजाफा हुआ है। उन्हें सामाजिक आर्थिक सुरक्षा कवच हासिल हुआ है। उन्होंने कहा कि जनाब हामिद अंसारी मुस्लिम बहुल देश ईरान, ईराक, लेबनान, सीरिया पर गौर करें जहां मजहब की समानता होते हुए भी एक दूसरे के खून के प्यासे बने हुए है और उन्हें नरसंहार करने से परहेज नहीं है, लेकिन विशाल भारत में इक्का दुक्का कोई घटना को लेकर मुल्क को बदनाम करके असहिष्णु बताना एक फैशन हो गया है। सेकुलरवाद के इस छद्म से यदि हामिद अंसारी साहब अपने को मुक्त रखते तो यह उनका इस वर्ग के प्रति उपकार होता। देश में बहस पैदाकर उन्होंने अंतहीन सिलसिला जारी करके मुल्क के समक्ष अलगाव की भावना को चिंगारी देकर विवाद पैदा किया है जो सर्वथा अनुचित, असामायिक और निदंनीय है।

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