राष्ट्रपति ने राष्ट्र के नाम अपने संदेश में कहा -भारत को विश्व समुदाय ने सम्मान की दृष्टि से देखना आरंभ किया
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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहा है कि जी-20 की अध्यक्षता भारत के लिए बेहतर विश्व और बेहतर भविष्य के लिए लोकतंत्र और बहुपक्षीयता को बढावा देने का एक अवसर है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया है कि जी-20, अधिक समानतापूर्ण और लोकहितकारी विश्व-व्यवस्था निर्मित करने की दिशा में अपने प्रयासों को और बढाएगा। राष्ट्रपति ने 74वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर कल राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा कि जी-20 वैश्विक चुनौतियों पर विमर्श और इसके समाधान तलाशने का एक आदर्श मंच है। जी-20, विश्व की लगभग दो-तिहाई जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करता है और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में इसका योगदान लगभग 85 प्रतिशत का है। सुश्री मुर्मु ने कहा कि शासन के सभी पहलुओं में परिवर्तन और लोगों की रचनात्मकता को निखारने के लिए हाल के प्रयासों के कारण विश्व समुदाय में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी है। उन्होंने कहा कि वैश्विक मंचों में भारत की भागीदारी के सकारात्मक परिणाम दिखने लगे हैं।
राष्ट्रपति ने वैश्विक तापमान में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के संबंध में कहा कि देश में वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों के विकास और उन्हें लोकप्रिय बनाने पर जोर दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए उभरती अर्थव्यवस्था को विकसित राष्ट्रों के तकनीकी सहयोग की आवश्यकता है। राष्ट्रपति ने विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन साधने की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि इसके लिए बुनियादी प्राथमिकताओं पर पुनर्विचार तथा पारंपरिक जीवन-मूल्यों के वैज्ञानिक पहलुओं पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्होंने जीवन-शैली और खासकर खानपान के तौर-तरीकों में बदलाव की आवश्यकता पर बल दिया। अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष पर राष्ट्रपति ने कहा कि मोटे अनाज पहले से ही भोजन का अनिवार्य अंग रहे हैं और इन्हें फिर से अपने भोजन में शामिल करने से स्वास्थ्य और पर्यावरण–दोनों का संरक्षण होगा। सुश्री मुर्मु ने कहा कि बाजरे जैसे मोटे अनाज पर्यावरण के अनुकूल हैं क्योंकि इनकी उपज के लिए कम पानी की आवश्यकता होती है और इनमें पोषक तत्वों की अधिकता होती है।
राष्ट्रपति ने शासन में सुधार के लिए सरकार के हाल के प्रयासों, लोगों के जीवन और सर्वोदय मिशन की उपलब्धियों की सराहना की। उन्होंने कहा कि देश ने आर्थिक, शैक्षिक, डिजिटल और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में बहुत प्रगति की है। सुश्री मुर्मु ने कहा कि आर्थिक अनिश्चितताओं, वैश्विक उथल-पुथल और कोविड की चुनौतियों के बावजूद, भारत विश्व में पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्र महामारी के दुष्चक्र से उबर गये हैं और यह आत्मनिर्भर भारत अभियान सहित अन्य त्वरित प्रयासों से संभव हुआ है। राष्ट्रपति ने गरीब परिवारों के लिए भोजन सुनिश्चित करने के प्रयोजन से चल रही प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के संबंध में कहा कि सरकार ने कमजोर वर्गों की देखभाल की जिम्मेदारी उठायी है ताकि उन्हें आर्थिक लाभ मिल सके।
राष्ट्र निर्माण में शिक्षा की भूमिका के संबंध में राष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति से आर्थिक-सामाजिक सशक्तिकरण होगा और सत्य का अनुसंधान भी संभव होगा। सुश्री मुर्मु ने डिजिटल और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की प्रगति का जिक्र करते हुए कहा कि डिजिटल भारत अभियान शहरी और ग्रामीण भारत की खाई को पाटने का माध्यम बन रहा है। उन्होंने कहा कि इंटरनेट से दूरदराज के क्षेत्रों को भी लाभ मिल रहा है और लोगों को सरकारी सेवाएं मिल रही है। उन्होंने कहा कि भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों के लिए शुरु किए गए गगनयान कार्यक्रम से भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया है जिनके पास इसकी तकनीक है। राष्ट्रपति ने कहा कि सभी क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी का बढ़ना इस बात का प्रमाण है कि नारी सशक्तिकरण और स्त्री-पुरुष समानता के क्षेत्रों में काफी प्रगति हुई है। उन्होंने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान में लोगों की सक्रिय भागीदारी की सराहना की। सुश्री मुर्मु ने कहा कि अनुसूचित जाति और जनजाति समेत सभी वंचित समुदायों के सशक्तिकरण के लिए किए जा रहे प्रयासों का उद्देश्य बाधाओं को समाप्त करना और विकास में सहायता करने के साथ-साथ उनसे सीखना भी है।
राष्ट्रपति ने भारत को विश्व की सबसे पुरानी जीवंत सभ्यता और लोकतंत्र की जननी बताया और कहा कि स्वतंत्रता के शुरूआती दिनों की असंख्य चुनौतियों और बाधाओं पर काबू पाकर भारत ने लोकतांत्रिक गणतंत्र के रूप में सफलता अर्जित की है। उन्होंने कहा कि यह सफलता इसलिए संभव हुई है कि तमाम सम्प्रदाय और भाषाएं हमें विभाजित करने का नहीं, बल्कि एकजुट करने का माध्यम बनी हैं। सुश्री मुर्मु ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान क्रांतिकारियों और सुधारकों ने दूरद्रष्टाओं और आदर्शवादियों के साथ मिलकर काम किया जिससे शांति, बंधुत्व और समानता के पुरातन मूल्यों से परिचित होने में मदद मिली। राष्ट्रपति ने कहा कि डॉक्टर बी. आर. आम्बेडकर, न्यायविद् वी एन राव. और संविधान निर्माण में सहयोगी अन्य विशेषज्ञों के प्रति राष्ट्र सदैव कृतज्ञ रहेगा। सुश्री मुर्मु ने कहा कि संवैधानिक मूल्य सदैव भारत का पथ-प्रदर्शन करते रहे हैं और अब विश्व मंच पर भारत को एक गरीब और निरक्षर देश से रुप में नहीं, बल्कि एक ऐसे देश के रुप में देखा जा रहा है जो आत्मविश्वास से सराबोर है।
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राष्ट्रपति ने राष्ट्र के नाम अपने संदेश में कहा -भारत को विश्व समुदाय ने सम्मान की दृष्टि से देखना आरंभ किया