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31 July 2021 ki Top News-Current Affairs                                            todayindia,todayindia news,today india,topnews31july2021,currentaffairs,31july2021kikhaskhabren,studymaterial,competativeexamstudymaterial

सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी में भारतीय पुलिस सेवा के प्रशिक्षुओं को प्रधानमंत्री के सम्बोधन का मूल पाठ
31 JUL 2021
आप सभी से बात करके मुझे बहुत अच्छा लगा। मेरा हर साल ये प्रयास रहता है कि आप जैसे युवा साथियों से बातचीत करुं, आपके विचारों को लगातार जानता रहूं। आपकी बातें, आपके सवाल, आपकी उत्सुकता, मुझे भी भविष्य की चुनौतियों से निपटने में मदद करती हैं।

साथियों,

इस बार की ये चर्चा ऐसे समय में हो रही है जब भारत, अपनी आजादी के 75 वर्ष का अमृत महोत्सव मना रहा है। इस साल की 15 अगस्त की तारीख, अपने साथ आजादी की 75वीं वर्षगांठ लेकर आ रही है। बीते 75 सालों में भारत ने एक बेहतर पुलिस सेवा के निर्माण का प्रयास किया है। पुलिस ट्रेनिंग से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर में भी हाल के वर्षों में बहुत सुधार हुआ है। आज जब मैं आपसे बात कर रहा हूं, तो उन युवाओं को देख रहा हूं, जो अगले 25 वर्ष तक भारत में कानून-व्यवस्था सुनिश्चित करने में सहभागी होंगे। ये बहुत बड़ा दायित्व है। इसलिए अब एक नई शुरुआत, एक नए संकल्प के इरादे के साथ आगे बढ़ना है।

साथियों,

मुझे बहुत जानकारी तो नहीं कि आप में से कितने लोग दांडी गए हुए हैं या फिर कितनों ने साबरमती आश्रम देखा है। लेकिन मैं आपको 1930 की दांडी यात्रा की याद दिलाना चाहता हूं। गांधी जी ने नमक सत्याग्रह के दम पर अंग्रेजी शासन की नींव हिला देने की बात कही थी। उन्होंने ये भी कहा था कि “जब साधन न्यायपूर्ण और सही होते हैं तो भगवान भी साथ देने के लिए उपस्थित हो जाते हैं”।

साथियों,

एक छोटे से जत्थे को साथ लेकर महात्मा गांधी साबरमती आश्रम से निकल पड़े थे। एक-एक दिन बीतता गया, और जो लोग जहां थे, वो नमक सत्याग्रह से जुड़ते चले गए थे। 24 दिन बाद जब गांधी जी ने दांडी में अपनी यात्रा पूरी की, तो पूरे देश, एक प्रकार से पूरा देश उठकर खड़ा गया हो गया था। कश्मीर से कन्याकुमारी, अटक से कटक। पूरा हिन्दुस्तान चेतनवंत हो चुका था। उस मनोभाव को याद करना, उस इच्छा-शक्ति को याद करिए। इसी ललक ने, इसी एकजुटता ने भारत की आजादी की लड़ाई को सामूहिकता की शक्ति से भर दिया था। परिवर्तन का वही भाव, संकल्प में वही इच्छाशक्ति आज देश आप जैसे युवाओं से मांग रहा है। 1930 से 1947 के बीच देश में जो ज्वार उठा, जिस तरह देश के युवा आगे बढ़कर आए, एक लक्ष्य के लिए एकजुट होकर पूरी युवा पीढ़ी जुट गई, आज वही मनोभाव आपके भीतर भी अपेक्षित है। हम सबको इस भाव में जीना होगा। इस संकल्प के साथ जुड़ना होगा। उस समय देश के लोग खासकर के देश के युवा स्वराज्य के लिए लड़े थे। आज आपको सुराज्य के लिए जी-जान से जुटना है। उस समय लोग देश की आजादी के लिए मरने-मिटने को तैयार थे। आज आपको देश के लिए जीने का भाव लेकर आगे चलना है। 25 साल बाद जब भारत की आज़ादी के 100 वर्ष पूरे होंगे, तब हमारी पुलिस सेवा कैसी होगी, कितनी सशक्त होगी, वो आपके आज के कार्यों पर भी निर्भर करेगी। आपको वो बुनियाद बनानी है, जिस पर 2047 के भव्य, अनुशासित भारत की इमारत का निर्माण होगा। समय ने इस संकल्प की सिद्धि के लिए आप जैसे युवाओं को चुना है। और मैं इसे आप सभी का बहुत बड़ा सौभाग्य मानता हूं। आप एक ऐसे समय पर करियर शुरु कर रहे हैं, जब भारत हर क्षेत्र, हर स्तर पर Transformation के दौर से गुजर रहा है। आपके करियर के आने वाले 25 साल, भारत के विकास के भी सबसे अहम 25 साल होने वाले हैं। इसीलिए आपकी तैयारी, आपकी मनोदशा, इसी बड़े लक्ष्य के अनुकूल होनी चाहिए। आने वाले 25 साल आप देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग पदों पर काम करेंगे, अलग-अलग रोल निभाएंगे। आप सभी पर एक आधुनिक, प्रभावी और संवेदनशील पुलिस सेवा के निर्माण की एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। और इसलिए, आपको हमेशा ये याद रखना है कि आप 25 साल के एक विशेष मिशन पर हैं, और भारत ने इसके लिए खासतौर पर आपको चुना है।

साथियों,

दुनियाभर के अनुभव बताते हैं कि जब कोई राष्ट्र विकास के पथ पर आगे बढ़ता है, तो देश के बाहर से और देश के भीतर से, चुनौतियां भी उतनी ही बढ़ती हैं। ऐसे में आपकी चुनौती, टेक्नॉलॉजिकल डिसरप्शन के इस दौर में पुलिसिंग को निरंतर तैयार करने की है। आपकी चुनौती, क्राइम के नए तौर तरीकों को उससे भी ज्यादा इनोवेटिव तरीके से रोकने की है। विशेष रूप से साइबर सिक्योरिटी को लेकर नए प्रयोगों, नई रिसर्च और नए तौर-तरीकों को आपको डवलप भी करना होगा और उनको अप्लाई भी करना होगा।

साथियों,

देश के संविधान ने, देश के लोकतंत्र ने, जो भी अधिकार देशवासियों को दिए हैं, जिन कर्तव्यों को निभाने की अपेक्षा की है, उनको सुनिश्चित करने में आपकी भूमिका अहम है। औऱ इसलिए, आपसे अपेक्षाएं बहुत रहती हैं, आपके आचरण पर हमेशा नज़र रहती है। आप पर दबाव भी बहुत आते रहेंगे। आपको सिर्फ पुलिस थाने से लेकर पुलिस हेडक्वार्टर की सीमाओं के भीतर ही नहीं सोचना है। आपको समाज में हर रोल, हर भूमिका से परिचित भी रहना है, फ्रेंडली भी होना है और वर्दी की मर्यादाओं को हमेशा सर्वोच्च रखना है। एक और बात का आपको हमेशा ध्यान रखना होगा। आपकी सेवाएं, देश के अलग-अलग जिलों में होंगी, शहरों में होंगी। इसलिए आपको एक मंत्र सदा-सर्वदा याद रखना है। फील्ड में रहते हुए आप जो भी फैसले लें, उसमें देशहित होना चाहिए, राष्ट्रीय परिपेक्ष्य होना चाहिए। आपके काम काज का दायरा और समस्याएं अक्सर लोकल होंगी, ऐसे में उनसे निपटते हुए ये मंत्र बहुत काम आएगा। आपको हमेशा ये याद रखना है कि आप एक भारत, श्रेष्ठ भारत के भी ध्वजवाहक है। इसलिए, आपके हर एक्शन, आपकी हर गतिविधि में Nation First, Always First- राष्ट्र प्रथम, सदैव प्रथम इसी भावना को रिफ्लेक्ट करने वाली होनी चाहिए।

साथियों,

मैं अपने सामने तेजस्वी महिला अफसरों की नई पीढ़ी को भी देख रहा हूं। बीते सालों में पुलिस फोर्स में बेटियों की भागीदारी को बढ़ाने का निरंतर प्रयास किया गया है। हमारी बेटियां पुलिस सेवा में Efficiency और Accountability के साथ-साथ विनम्रता, सहजता और संवेदनशीलता के मूल्यों को भी सशक्त करती हैं। इसी तरह 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में कमिश्नर प्रणाली लागू करने को लेकर भी राज्य काम कर रहे हैं। अभी तक 16 राज्यों के अनेक शहरों में ये व्यवस्था लागू की जा चुकी है। मुझे विश्वास है कि बाकी जगह भी इसको लेकर सकारात्मक कदम उठाए जाएंगे।

साथियों,

पुलिसिंग को Futuristic और प्रभावी बनाने में सामूहिकता और संवेदनशीलता के साथ काम करना बहुत ज़रूरी है। इस कोरोना काल में भी हमने देखा है कि पुलिस के साथियों ने किस तरह स्थितियों को संभालने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। कोरोना के खिलाफ लड़ाई में हमारे पुलिसकर्मियों ने, देशवासियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया है। इस प्रयास में कई पुलिस कर्मियों को अपने प्राणों ही आहूति तक देनी पड़ी है। मैं इन सभी जवानों को पुलिस साथियों को आदरपूर्वक श्रद्धांजलि देता हूं और देश की तरफ से उनके परिवारों के प्रति संवेदना प्रकट करता हूं।

साथियों,

आज आपसे बात करते हुए, मैं एक और पक्ष आपके सामने रखना चाहता हूं। आज कल हम देखते हैं कि जहां-जहां प्राकृतिक आपदा आती है, कहीं बाढ़, कहीं चक्रवाती तूफान, कही भूस्खलन, तो हमारे NDRF के साथी पूरी मुस्तैदी के साथ वहां नजर आते हैं। आपदा के समय NDRF का नाम सुनते ही लोगों में एक विश्वास जगता है। ये साख NDRF ने अपने बेहतरीन काम से बनाई है। आज लोगों को ये भरोसा है कि आपदा के समय NDRF के जवान हमें जान की बाजी लगाकर भी बचाएंगे। NDRF में भी तो ज्यादातर पुलिस बल के ही जवान होते हैं आपके ही साथी होते हैं।। लेकिन क्या यही भावना, यही सम्मान, समाज में पुलिस के लिए है? NDRF में पुलिस के लोग हैं। NDRF को सम्मान भी है। NDRF में काम करने वाले पुलिस के जवान को भी सम्मान है। लेकिन सामाजिक व्यवस्था वैसा है क्या? आखिर क्यों? इसका उत्तर, आपको भी पता है। जनमानस में ये जो पुलिस का Negative Perception बना हुआ है, ये अपनेआप में बहुत बड़ी चुनौती है। कोरोना काल की शुरुआत में महसूस किया गया था कि ये परसेप्शन थोड़ा बदला है। क्योंकि लोग जब वीडियों देख रहे थे सोशल मीडिया में देख रहे थे। पुलिस के लोग गरीबों की सेवा कर रहे हैं। भूखे को खिला रहे हैं। कहीं खाना पकाकर के गरीबों को पहुंचा रहे हैं तो एक समाज में पुलिस की तरफ देखने का, सोचने का वातावरण बदला रहा था। लेकिन अब फिर वही पुरानी स्थिति हो गई है। आखिर जनता का विश्वास क्यों नहीं बढ़ता, साख क्यों नहीं बढ़ती?

साथियों,

देश की सुरक्षा के लिए, कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए, आतंक को मिटाने के लिए हमारे पुलिस के साथी, अपनी जान तक न्योछावर कर देते हैं। कई-कई दिन तक आप घर नहीं जा पाते, त्योहारों में भी अक्सर आपको अपने परिवार से दूर रहना पड़ता है। लेकिन जब पुलिस की इमेज की बात आती है, तो लोगों का मनोभाव बदल जाता है। पुलिस में आ रही नई पीढ़ी का ये दायित्व है कि ये इमेज बदले, पुलिस का ये Negative Perception खत्म हो। ये आप लोगों को ही करना है। आपकी ट्रेनिंग, आपकी सोच के बीच बरसों से चली आ रही पुलिस डिपार्टमेंट की जो स्थापित परंपरा है, उससे आपका हर रोज आमना-सामना होना ही होना है। सिस्टम आपको बदल देता है या आप सिस्टम को बदल देते हैं, ये आपकी ट्रेनिंग, आपकी इच्छाशक्ति औऱ आपके मनोबल पर निर्भर करता है। आपके इरादे कोन से हैं। किन आदर्शो से आप जुड़े हुए हैं। उन आदर्शों की परिपूर्ति के लिए कौन संकल्प लेकर के आप चल रहे हैं। वो ही मेटर करता है आपके व्यवहार के बाबत में। ये एक तरह से आपकी एक और परीक्षा होगी। और मुझे भरोसा है, आप इसमें भी सफल होंगे, जरूर सफल होंगे।

साथियों,

यहां जो हमारे पड़ोसी देशों के युवा अफसर हैं, उनको भी मैं बहुत-बहुत शुभकामनाएं देना चाहूंगा। भूटान हो, नेपाल हो, मालदीव हो, मॉरीशस हो, हम सभी सिर्फ पड़ोसी ही नहीं हैं, बल्कि हमारी सोच और सामाजिक तानेबाने में भी बहुत समानता है। हम सभी सुख-दुख के साथी हैं। जब भी कोई आपदा आती है, विपत्ति आती है, तो सबसे पहले हम ही एक दूसरे की मदद करते हैं। कोरोना काल में भी हमने ये अनुभव किया है। इसलिए, आने वाले वर्षों में होने वाले विकास में भी हमारी साझेदारी बढ़ना तय है। विशेष रूप से आज जब क्राइम और क्रिमिनल, सीमाओं से परे हैं, ऐसे में आपसी तालमेल और ज्यादा ज़रूरी है। मुझे विश्वास है कि सरदार पटेल अकेडमी में बिताए हुए आपके ये दिन, आपके करियर, आपके नेशनल और सोशल कमिटमेंट और भारत के साथ मित्रता को प्रगाढ़ करने में भी मदद करेंगे। एक बाऱ फिर आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं ! धन्यवाद !

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देश में 2014 के बाद यूजी और पीजी की मेडिकल सीटें बढ़ीं : केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री
भारत में 2014 के बाद से बढ़ी संख्या में मेडिकल की सीटें बढ़ाई गईं हैं। गुरुवार को संसद में स्वास्थ्य मंत्री ने यह जानकारी दी। सदन में पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए केन्द्रीय मंत्री ने कहा- पिछले 6 वर्षों के दौरान, देश में एमबीबीएस सीटें 2014 में 54,348 सीटों से बढ़कर 2020 में 84,649 सीटों तक पहुंच गई हैं। वहीं पीजी सीटों की संख्या 2014 में 30,191 सीटों से बढ़कर 2020 में 54,275 सीटों पर पहुंच गई है।

सरकार ने लिया है एक और बढ़ा फैसला
देश में मेडिकल शिक्षा को लेकर केंद्र सरकार की ओर से एक बड़ा फैसला लिया गया है। इसके तहत वर्तमान शैक्षणिक वर्ष 2021-22 से अंडरग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल व डेंटल कोर्स के लिए अखिल भारतीय कोटा (एआईक्यू) योजना के तहत ओबीसी और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के उम्मीदवारों को आरक्षण दिया जाएगा। फैसले के अनुसार, अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को 27% और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के उम्मीदवारों को 10% आरक्षण प्राप्त होगा।

वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्तमान शैक्षणिक वर्ष से स्नातक और स्नातकोत्तर मेडिकल व डेंटल पाठ्यक्रमों के लिए अखिल भारतीय कोटा योजना में अन्य पिछड़ा वर्ग को और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को आरक्षण प्रदान करने के सरकार के ऐतिहासिक फैसले की सराहना की है।

5,550 छात्र होंगे लाभान्वित
इस संबंध में स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने ट्वीट कर कहा, ‘देश में मेडिकल एजुकेशन के क्षेत्र में सरकार द्वारा ऐतिहासिक निर्णय लिया गया है। ऑल इंडिया कोटे के तहत अंडरग्रेजुएट/पोस्ट ग्रेजुएट, मेडिकल तथा डेंटल शिक्षा में ओबीसी वर्ग के छात्रों को 27% व कमजोर आय वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के छात्रों को 10% आरक्षण दिया जाएगा। इस निर्णय से मेडिकल और डेंटल शिक्षा में प्रवेश के लिए ओबीसी तथा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) से आने वाले 5,550 छात्र लाभान्वित होंगे। देश में पिछड़े और कमजोर आय वर्ग के उत्थान के लिए उन्हें आरक्षण देने को सरकार प्रतिबद्ध है।’

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जलियांवाला कांड के शहीदों का बदला लेने वाले वीर उधम सिंह
“मरने के लिए बूढ़े होने का इंतजार क्यों करना? मैं देश के लिए अपनी जान दे रहा हूं…”, आज से 81 साल पहले भारत के वीर पुत्र ने फांसी पर चढ़ने से पहले अपने देशवासियों के नाम यह चिट्ठी लिखी थी। सैंकड़ों भारतीयों के नरसंहार का बदला लेने वाले वीर उधम सिंह ने वर्ष 1940 में आज ही के दिन खुशी-खुशी मौत को गले लगाया था। भारत के इस सपूत ने 21 सालों बाद, 13 मार्च, 1940 को लंदन जाकर अपनी कसम पूरी की थी।

जलियांवाला कांड की सैकड़ों मौतों का जिम्मेदार जनरल ओ डायर
13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन के पंजाब के अमृतसर स्थित जलियांवाला बाग में एक जनसभा आयोजित की गई। माइकल ओ डायर जलियांवाला कांड के वक्त पंजाब प्रांत के गवर्नर थे। अंग्रेजों के कड़े विरोध के बाद भी इस जनसभा में सैकड़ों की संख्या में लोग एकत्रित हुए। इस दौरान नेता भाषण भी दे रहे थे। इसी दौरान जनसभा में जनरल ओ डायर अपने सैनिकों के साथ पहुंच गया। जनसभा देख जनरल डायर ने अपने सैनिकों को जनसभा पर फायरिंग करने का आदेश दे दिया। इस घटना में सैकड़ों की संख्या में निहत्थे लोगों की मौत हो गई। निर्दोष भारतीयों को जब अंग्रेज गोलियों से भून रहे थे, तो उधम सिंह ने अपनी मिट्टी से वादा किया था कि वो इस नरसंहार का बदला लेकर रहेंगें।

शेर सिंह था असली नाम
यह वीर देशभक्त जिन्हें पूरा देश सरदार उधम सिंह के नाम से जानता है, उनका असली नाम शेर सिंह था। बता दें कि उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब में शेर सिंह के रूप में हुआ था। उनके पिता, सरदार तहल सिंह जम्मू, एक किसान थे और उपल्ली गाँव में रेलवे क्रॉसिंग चौकीदार के रूप में भी काम करते थे। उनके पिता की मृत्यु के बाद, उन्हें और उनके बड़े भाई मुक्ता सिंह को अमृतसर में केंद्रीय खालसा अनाथालय द्वारा ले जाया गया। अनाथालय में, उनको सिख दीक्षा संस्कार और उधम सिंह का नाम दिया गया। उन्होंने 1918 में मैट्रिक की परीक्षा पास की और 1919 में अनाथालय छोड़ दिया।

जलियांवाला बाग हत्याकांड ने दिया जीवन को महत्वपूर्ण मोड़
यह जलियांवाला बाग हत्याकांड था जिसने उनके जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ दिया और शहीदों का बदला लेने के लिए प्रेरित किया। 1924 में, उधम सिंह गदर पार्टी में शामिल हो गए, बाद में उधम ने अफ्रीका, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप की यात्रा की, औपनिवेशिक शासन को उखाड़ फेंकने के लिए विदेशों में भारतीयों को संगठित किया। 1927 में, वह भगत सिंह के आदेश पर 25 सहयोगियों के साथ-साथ रिवाल्वर और गोला-बारूद लेकर भारत लौट आए। इसके तुरंत बाद, उसे बिना लाइसेंस के हथियार रखने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। रिवॉल्वर, गोला-बारूद, और “गदर-ए-गंज” (“वॉयस ऑफ रिवोल्ट”) नामक गदर पार्टी के निषिद्ध पेपर की प्रतियां जब्त कर ली गईं। उन पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें पांच साल जेल की सजा सुनाई गई।

ब्रिटेन की खुफिया एजेंसी भी उन्हें ढूंढने में रही थी नाकाम
उधम सिंह अपने मिशन को अंजाम देने के लिए इतने समर्पित थे कि वे कई साल तक वेशभूषा बदल कर विदेश में रहे। इस दौरान एक तरफ दूसरे विश्व युद्ध का खतरा मंडरा रहा था और दूसरी तरफ साउथैंपटन में उधम सिंह ‘आजाद’ के नाम से रह रहे थे। यहां वो सेना के लिए कैंप बनाने वाली कंपनी में काम करते थे। उधम सिंह ने ‘एलिफेंट बॉय’ और ‘द फोर फेदर्स’ नाम की दो ब्रिटिश फिल्मों में भी काम किया, लेकिन कोई उन्हें पहचान नहीं पाया। वहां अंग्रेजों की ज्यादतियों का विरोध करने के कारण वो पुलिस की नजरों में तो आ गए, लेकिन कभी किसी के हाथ नहीं आए। उनके पीछे ब्रिटेन की खुफिया एजेंसी भी लगी हुई थी, लेकिन कोई उन्हें खोज नहीं पाया।

13 मार्च 1940 को 21 साल का लंबा इंतजार हुआ था खत्म
वर्ष 1940 की 13 मार्च को उधम सुबह से ही अपनी योजना को अंजाम देने के लिए पूरी तरह तैयार थे। माइकल ओ डायर को एक सभा में हिस्सा लेने के लिए तीन बजे लंदन के कैक्सटन हॉल में जाना था। उधम वहां समय से पहुंच गए। वो अपने साथ एक किताब ले कर गए थे, जिसके पन्नों को काट कर उन्होंने बंदूक रखने की जगह बनाई थी। उन्होंने धैर्य के साथ सभी के भाषण खत्म होने का इंतजार किया और आखिर में मौका पाते ही किताब से बंदूक निकाल कर डायर के सीने में धड़ाधड़ गोलियां दाग दीं। डायर को दो गोलियां लगीं और मौके पर ही उनकी मौत हो गई। उधम सिंह का 21 साल लंबा इंतजार तो खत्म हो गया, लेकिन उन्हें इसकी सजा भी मिली। उन्हें तुरंत पकड़ कर हिरासत में ले लिया गया।

जन्मस्थान सुनाम में किया गया अंतिम संस्कार
उन्होंने एक बार कहा था, ‘मुझे परवाह नहीं है, मुझे मरने से कोई फर्क नहीं पड़ता। बुढ़ापा आने तक इंतजार करने से क्या फायदा? यह अच्छा नहीं है। आप युवा होने पर मरना चाहते हैं। यह अच्छा है, मैं यही कर रहा हूं’। एक विराम के बाद उन्होंने कहा था, ‘मैं अपने देश के लिए मर रहा हूं’। सरदार उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और मौत की सजा सुनाई गई। 31 जुलाई 1940 को उधम सिंह को पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई। 1974 में, विधायक साधु सिंह थिंड के अनुरोध पर सिंह के अवशेषों को खोदा गया और भारत वापस लाया गया। इसके बाद पंजाब में स्थित उनके जन्मस्थान सुनाम में उनका अंतिम संस्कार किया गया और उनकी राख को सतलज नदी में प्रवाह कर दिया गया। उनकी कुछ बची हुई राख को जलियांवाला बाग में एक सीलबंद कलश में रखा गया है। भारत की मिट्टी को हमेशा अपने इस वीर सपूत पर नाज रहेगा।

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टोक्यो 2020: क्वार्टर फाइनल में पहुंची भारतीय महिला हॉकी टीम
भारतीय महिला हॉकी टीम ने टोक्यो ओलंपिक खेलों में क्वार्टर फाइनल में प्रवेश कर लिया है। क्वार्टर फाइनल में भारत का सामना अब ऑस्ट्रेलिया से होगा। भारतीय टीम पांच मैचों में दो जीत के साथ पूल ए में चौथे स्थान पर रही। दरअसल भारत को क्वार्टर फाइनल में पहुंचने के लिए ग्रेट ब्रिटेन और आयरलैंड के मैच पर निर्भर रहना था। टूर्नामेंट के नियमों के तहत हर ग्रुप से शीर्ष चार टीमों को ही क्वार्टरफाइनल के लिए क्वालीफाई करना था। ब्रिटेन ने आयरलैंड को आज खेले गए रोमांचक मुकाबले में 2-0 से हराया। भारतीय टीम अपने सभी मुकाबले खेलकर ग्रुप ए में चौथे स्थान पर रही।

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उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने भारतीय भाषाओं को संरक्षित करने के लिए सामूहिक प्रयास का आह्वान किया
उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने भारतीय भाषाओं को संरक्षित और पुनर्जीवित करने के लिए नए और सामूहिक प्रयास करने का आह्वान किया है। श्री नायडू मातृभाषा के संरक्षण के लिए आज तेलुगू कूटामि सम्मेलन को वर्चुअल माध्यम से संबोधित कर रहे थे। उन्होंने भारतीय भाषाओं के संरक्षण और उनके प्रचलन पर बल दिया। श्री नायडू ने कहा कि ये जन आंदोलन से ही संभव है। उन्होंने उतकृष्ट अनुवाद की आवश्यकता और भारतीय भाषाओं में वैज्ञानिक शब्दावली में सुधार पर जोर दिया।

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संस्‍कृति राज्‍यमंत्री मीनाक्षी लेखी ने आर्थिक विकास तथा रोजगार में सांस्कृतिक क्षेत्रों के महत्‍व को रेखांकित किया

संस्‍कृति राज्‍यमंत्री मीनाक्षी लेखी ने कहा है कि संस्‍कृति और सृजनात्‍मक क्षेत्र रोजगार पैदा कर, असमानताएं कम कर, सतत विकास पर जोर देकर और लोगों को विशिष्‍ट पहचान प्रदान कर विकास को बढ़ावा दे सकती है। वे कल जी-20 देशों के संस्‍कृति मंत्रियों की बैठक को सम्‍बोधित कर रही थीं। श्रीमती लेखी ने आर्थिक विकास तथा रोजगार और महिलाओं, युवाओं तथा स्‍थानीय समुदायों को अधिक अवसर देने में संस्‍कृति और सृजनात्‍मक क्षेत्रों के महत्‍व को रेखांकित किया है। उन्‍होंने संस्‍कृति और सृजनात्‍मक क्षेत्रों के विकास के लिए भारत द्वारा किए गए विभिन्‍न प्रयासों का उल्‍लेख किया। श्रीमती लेखी ने इस संदर्भ में उत्‍तर प्रदेश सरकार की योजना- एक जिला एक उत्‍पाद और योग तथा आयुर्वेद को बढ़ावा देने सम्‍बंधी अन्‍य योजनाओं का जिक्र भी किया। उन्‍होंने सांस्‍कृतिक तथा सृजनात्‍मक क्षेत्रों से सम्‍बंधित एकसमान मुद्दों के समाधान और जन-नीतियों को अपनाने तथा इनकी समुचित जानकारी देने के लिए अंतरराष्‍ट्रीय संवाद और सहयोग की आवश्‍यकता पर बल दिया।

श्रीमती लेखी ने समाज के सांस्‍कृतिक और सृजनात्‍मक क्षेत्रों को बढ़ावा देने के प्रयासों में अंतरराष्‍ट्रीय सांस्‍कृतिक सहयोग और सहायता की भारत की प्रतिबद्धता दोहराई। चर्चा के अंत में जी-20 संस्‍कृति कार्यदल के विचारणीय विषयों को मंजूरी दी गई।

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लेफ्टिनेंट जनरल तरुण कुमार चावला ने आर्टिलियरी के महानिदेशक का पदभार संभाला
लेफ्टिनेंट जनरल तरुण कुमार चावला, एवीएसएम दिनांक 1 अगस्त 2021 को आर्टिलियरी के महानिदेशक का पदभार ग्रहण करेंगे। उन्होंने लेफ्टिनेंट जनरल के रवि प्रसाद, पीवीएसएम, वीएसएम से यह कार्य संभाला है, जो दिनांक 31 जुलाई 2021 को सेना में सेवा के उनतीस साल पूरे करने के बाद सेवानिवृत्त हो गए हैं।

जनरल ऑफिसर सेंट थॉमस हाई स्कूल, देहरादून और राष्ट्रीय रक्षा अकादमी, खडकवासला के पूर्व छात्र हैं। उन्हें जून 1984 में आर्टिलयरी फील्ड रेजिमेंट में कमीशन प्रदान किया गया था और उन्होंने इस क्षेत्र के व्यापक स्पेक्ट्रम में काम किया है और कई कमांड, स्टाफ और निर्देशात्मक नियुक्तियों में अपनी सेवा प्रदान की है। उन्होंने वेस्टर्न और ईस्टर्न दोनों सेक्टर्स में एक आर्टिलियरी रेजिमेंट की कमान संभाली। उन्होंने नियंत्रण रेखा पर एक आर्टिलियरी ब्रिगेड और बाद में वेस्टर्न थिएटर में एक आर्टिलियरी डिवीजन की कमान संभाली है।

वह डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज वेलिंगटन, कॉलेज ऑफ डिफेंस मैनेजमेंट सिकंदराबाद और नेशनल डिफेंस कॉलेज नई दिल्ली के पूर्व छात्र हैं, उन्होंने मिलिट्री सेक्रेट्री ब्रांच, तत्कालीन परस्पेक्टिव और अब स्ट्रैटेजिक कहलाने वाले प्लानिंग डायरेक्टरेट, नॉर्दर्न सेक्टर में इन्फैंट्री डिवीजन तथा अंततः फाइनेंशियल प्लानिंग ब्रांच में डीजी का पदभार संभाला है । वह डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज वेलिंगटन में नियुक्ति के अलावा स्कूल ऑफ आर्टिलियरी देवलाली और कॉलेज ऑफ डिफेंस मैनेजमेंट सिकंदराबाद में प्रशिक्षक रहे हैं।

जनरल ऑफिसर ने लाइबेरिया में संयुक्त राष्ट्र मिशन (यूएनओएमआईएल) में एक मिलिट्री ऑब्ज़र्वर के रूप में कार्य किया। उनकी शिक्षा की बात करें तो रक्षा और रणनीतिक अध्ययन तथा हथियार प्रणाली में मास्टर डिग्री और रक्षा एवं रणनीतिक अध्ययन में एमफिल की डिग्री शामिल है।

===========(Courtesy)=============

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