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भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी- जन्मदिवस विशेष आलेख
atal bihari vajpayee,happy birthday atal ji,todayindia,todayindia news,today india news in hindi,Headlines,Latest News,Breaking News,Cricket ,Bollywood24,today india news,today indiaएक स्वर में सभी कहते थे,
अटलजी जैसा कोई नही।

पिछले सात दशक की राजनीति में भारत में एक व्यक्तित्व
उभरा और देश ने उसे सहज स्वीकार किया। जिस तरह इतिहास
घटता है, रचा नहीं जाता; उसी तरह नेता प्रकृति प्रदत्त प्रसाद
होता है, वह बनाया नहीं जाता बल्कि पैदा होता है। प्रकृति की
ऐसी ही एक रचना का नाम है पं. अटल बिहारी वाजपेयी।

अटलजी के जीवन पर, विचार पर, कार्यपद्धति पर, विपक्ष के
नेता के रूप में, भारत के जननेता के रूप में, विदेश नीति पर,
संसदीय जीवन पर , उनकी वक्तृत्व कला पर, उनके कवित्व रूपी
व्यक्तित्व पर, उनके रसभरे जीवन पर, उनकी वासंती भाव –
भंगिमा पर, जनमानस के मानस पर अमिट छाप, उनके कर्तृत्व पर
एक नहीं अनेक लोग शोध कर रहे हैं । आज जो राजनीतिज्ञ देश में
हैं, उनमें अगर किसी भी दल के किसी भी नेता से किसी भी समय
अगर सामान्य सा सवाल किया जाए कि उन्हें अटलजी कैसे लगते
थे? तो सर्वदलीय भाव से एक ही उत्तर आएगा – ' उन जैसा कोई
नहीं था !
’भारत रत्न’ अटल बिहारी वाजपेयी भारत के एक बार तेरह
दिन, दूसरी बार तेरह महीने और तीसरी बार साढे़ चार वर्ष

प्रधानमंत्री रहे। अटलजी प्रधानमंत्री बने यह सिर्फ भाजपा की नहीं
बल्कि पूरे भारत की इच्छा थी। वर्षों तक विपक्ष के नेता रहते हुए
भारत का अनेकों बार भ्रमण किया। भ्रमण के दौरान अपनी वाणी
से प्रत्येक भारतीयों को जहां जोड़ा और भारत को समझा वहीं
सदन के भीतर सत्ता में बैठे लोगों पर मां भारती के प्रहरी बनकर
सदैव उनकी गलतियों को देश के सामने रखते रहे। भारत की
राजनीति में विपक्ष में रहते हुए जितनें लोकप्रिय और सर्वप्रिय
अटलजी रहे प्रधानमंत्री रहते हुए भी पण्डित जवाहरलाल नेहरू
उतने लोकप्रिय नहीं हुए।
अटलजी के आचरण और वचन में लयबद्धता और एकरूपता
थी। वे जबतक सदन में विपक्ष या सत्ता में रहे तब तक सदन के
“राजनैतिक हीरो’’ अटलजी ही रहे। इस बात को हम नहीं बल्कि
तत्कालीन अनेक वरिष्ठ नेतागण स्वंय कहते थे।
‘अटलजी’ थे तो जनसंघ और आगे भाजपा के, परंतु उन्हे सभी
दलो के लोग अपना मानते थे। उनकी ग्राह्यता और स्वीकार्यता तो
इसी से पता लग जाती है कि उन्हे भारत के पूर्व प्रधानमंत्री कांग्रेस
के नेता पी. वी. नरसिम्हाराव ने सन् 1994 में जब प्रतिपक्ष का
नेता रहते हुए जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में
भारत के प्रतिनिधि मंडल के नेता के रूप में भेजा था। जबकि ऐसी
बैठकों में भारत का प्रधानमंत्री या अन्य ज्येष्ठ मंत्री ही नेता के रूप
में जाते हैं, इस घटना से सारा विश्व चकित था। वहीं पूर्व
प्रधानमंत्री इंदिराजी हों या स्व.चन्द्रशेखर सभी उन्हे संसद की
गरिमा और प्रेरणा मानते हुए सम्मान करते थे।

भारत के राजनैतिक विश्लेषकों का मानना था कि अटलजी
अगर दस वर्ष पूर्व भारत के प्रधानमंत्री बन गए होते तो भारत का
भविष्य कुछ और होता। आजादी के दूसरे दिन जो प्राथमिकतांए
तय होनी थी, वह अटलजी के प्रधानमंत्री बनने तक तय नहीं हुई
थी। बावजूद इसके कि अटलजी कवि हृदय और प्रखर पत्रकार रहते
हुए अपने कार्यकाल में जो ऐतिहासिक और कठोर निर्णय लिए उसे
भारत के राजनैतिक जीवन दर्शन में सदैव याद रखा जाएगा।
संयुक्त राष्ट्र संघ हिंदी में भाषण
सन 1977 में आपात काल हटने के बाद जब जनता पार्टी की
सरकार बनी, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी भाई देसाई ने
उन्हें अपने काबीना मे विदेश मंत्री बनाया था। उस दौरान की एक
घटना आज भी भारत ही नहीं विश्व भर में लोगों के जहन में ताजा
है। संयुक्त राष्ट्र संघ में जब विदेश मंत्री के नाते अटलजी पहुंचे और
भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी में सम्बोधन किया तो पूरा भारत झूम
उठा था वे जब जहां और जैसे भी रहे सदैव भारत की मर्यादा और
भारतमाता को वैभवशाली बनाने का कार्य किया।
‘पोखरण विस्फोट’’
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का मानना था कि हमें
हमारी सुरक्षा का पूरा अधिकार है। इसी के तहत मई 1998 में
भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था। वह 1974 के बाद
भारत का पहला परमाणु परीक्षण था। 11 मई 1998 यानी आज

से 22 साल पहले राजस्थान के पोखरण में एक जोरदार धमाका
हुआ और धरती हिल उठी। ये कोई भूकंप नहीं था, बल्कि हिंदुस्तान
के शौर्य की धमक थी और भारत के परमाणु पराक्रम की गूंज थी।
इस परीक्षण से भारत एक मजबूत और ताकतवर देश के रूप में
दुनिया के सामने उभरा। दुनिया की प्रतिक्रियाएं स्वाभाविक थीं,
लेकिन अब भारत के परमाणु महाशक्ति बनने का मार्ग प्रशस्त हो
चुका था और वह दिन लदने जा रहे थे जब परमाणु क्लब में बैठे
पांच देश अपनी आंखों के इशारे से दुनिया की तकदीर को बदलते
थे। पोखरण ने हमें दुनिया के सामने सीना तानकर चलने की
हिम्मत दी, हौसला दिया।

पोटा कानून
13 दिसंबर, 2001 को आतंकवादियों द्वारा भारतीय संसद
पर हमला किया गया। इस हमले में कई सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए।
आतंरिक सुरक्षा के लिए सख्त कानून बनाने की मांग हुई और अटल
बिहारी वाजपेयी जी के नेतृत्व में सरकार ने पोटा क़ानून बनाया,
अत्यंत सख्त आतंकवाद निरोधी कानून था, जिसे 1995 के टाडा
क़ानून के मुक़ाबले बेहद कड़ा माना गया था। हालांकि इस क़ानून
के बनने के बाद ही इसको लेकर आलोचनाओं का दौर शुरू हो गया
कि इसके ज़रिए सरकार विरोधियों को निशाना बना रही है। महज

दो साल के अंदर इस क़ानून के तहत 800 लोगों को गिरफ़्तार
किया गया। और क़रीब 4000 लोगों पर मुक़दमा दर्ज किए गए।
उस दौरान वाजपेयी सरकार ने 32 संगठनों पर पोटा के तहत
पाबंदी लगाई। 2004 में जब यूपीए सरकार सत्ता में आई तब ये
क़ानून निरस्त कर दिया गया।

लाहौर बस सेवा की शुरुआत
अटलजी हमेशा पाकिस्तान से बेहतर रिश्ते की बात करते थे।
उन्होंने पहल करते हुए दोनों देशों के बीच रिश्ते सुधारने की दिशा
में काम किया। अटल बिहारी वाजपेयी के ही कार्यकाल में फरवरी,
1999 में दिल्ली-लाहौर बस सेवा की शुरूआत हुई थी। पहली बस
सेवा से वे खुद लाहौर गए और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज
शरीफ के साथ मिलकर लाहौर दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए।
वाजपेयी जी अपनी इस लाहौर यात्रा के दौरान मीनार-ए-
पाकिस्तान भी गए। तब तक भारत का कोई भी कांग्रेसी प्रधानमंत्री
मीनार-ए-पाकिस्तान जाने का साहस नहीं जुटा पाए थे। मीनार-
ए-पाकिस्तान वो जगह है जहां पाकिस्तान को बनाने का प्रस्ताव
23 मार्च, 1940 को पास किया गया था।

जाति आधारित जनगणना पर रोक

1999 में अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार के बनने
से पहले एचडी देवगौड़ा सरकार ने जाति आधारित जनगणना
कराने को मंजूरी दे दी थी जिसके चलते 2001 में जातिगत
जनगणना होनी थी। मंडल कमीशन के प्रावधानों को लागू करने के
बाद देश में पहली बार जनगणना 2001 में होनी थी, कमीशन के
प्रावधानों को ठीक ढंग से लागू किया जा रहा है या नहीं इसे देखने
के लिए जातिगत जनगणना कराए जाने की मांग जोर पकड़ रही
थी। न्यायिक प्रणाली की ओर से बार-बार तथ्यात्मक आंकड़ों को
जुटाने की बात कही जा रही थी ताकि कोई ठोस कार्य प्रणाली
बनाई जा सके। तत्कालीन रजिस्टार जनरल ने भी जातिगत
जनगणना की मंजूरी दे दी थी। लेकिन वाजपेयी सरकार ने इस
फ़ैसले को पलट दिया। जिसके चलते जातिवार जनगणना नहीं हो
पाई।

स्वर्णिम चतुर्भुज और ग्रामीण सड़क परियोजना
प्रधानमंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी ने देश को एक
सूत्र में पिरोने के लिए सड़कों का जाल बिछाने का अहम फैसला
लिया था, जिसे स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना नाम दिया
गया। उन्होंने चेन्नई, कोलकाता, दिल्ली और मुबंई को जोड़ने के
लिए स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना लागू किया। जिसका लाभ
आज पूरे देश को मिल रहा है। आज उन्ही सड़कों के कारण आम
आदमी का एक राज्य से दूसरे राज्य जाना आसान हुआ है। बड़े
महानगरों के अलावा ग्रामीण इलाकों के लिए प्रधानमंत्री ग्रामीण

सड़क योजना लागू की। इस योजना के जरिए सभी गांवों में अच्छी
सड़क बनी। जिससे वहां यातायात सुगम हुआ और ग्रामीणों को
व्यापार के अच्छे अवसर मिले।

दूरसंचार क्रांति
देश में दूरसंचार क्रांति लाने और उसे गांव-गांव तक
पहुचाने का श्रेय अटल बिहारी वाजपेयी को ही जाता है। वाजपेयी
सरकार ने 1999 में बीएसएनएल के एकाधिकार को खत्म कर नई
दूरसंचार नीति लागू की। नई नीति के जरिए लोगों को सस्ती कॉल
दरें मिली और मोबाइल का चलन बढ़ा। इस फैसले के बाद ही
टेलीकॉम ऑपरेटर्स ने मोबाइल सेवा शुरू की।
8 प्रतिशत से अधिक पहुंची थी आर्थिक वृद्धि दर
अटलजी की सबसे बढ़ी उपलब्धि आर्थिक मोर्चे पर रही।
उन्होंने 1991 में नरसिंहराव सरकार के दौरान शुरू किये गए
आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाया। 2004 में जब मनमोहन सिंह ने
वाजपेयी सरकार के बाद सत्ता संभाली तब अर्थव्यवस्था की
तस्वीर बेहद मजबूत थी। जीडीपी वृद्धि दर 8 प्रतिशत से अधिक
थी, मंहगाई दर 4 प्रतिशत से कम थी और विदेशी मुद्रा भंडार
रिकॉर्ड स्तर पर भरा था।

सर्व शिक्षा अभियान
6 से 14 साल के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने का अभियान
‘सर्व शिक्षा अभियान’ अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में ही
शुरू किया गया था। उनके इस क्रांतिकारी अभियान से साक्षरता
और शिक्षा दर में अभूतपूर्व रूप से बढ़ोतरी हुई। लोगों ने पढ़ाई को
महत्व दिया और अपने बच्चों को काम पर भेजने के बजाये पढ़ाई के
लिए भेजना आरंभ किया। वाजपेयी सरकार के इस अभियान ने
व्यापक सामाजिक परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त किया।
जब डॉ. अब्दुल कलाम को भारत का राष्ट्रपति बनाया
नेहरूजी के जमाने से जनसंघ और वर्तमान की भाजपा,
कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों ने साम्प्रदायिकता का आरोप
लगाया। अटलजी ने मिसाइल मैन प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ. अब्दुल
कलाम को भारत का राष्ट्रपति बनाकर साम्प्रदायिकता का आरोप
लगाने वालों को करारा जवाब दिया।
अटलजी ने कभी भी 'भारतमाता' को अपनी आंखों से ओझल
नहीं किया। वे जीए तो भारत मां के लिए और मरे भी तो भारत
मां के लिए। भारत मां के ऐसे महान सपूत और अंतर्राष्ट्रीय व्यक्ति

को भारतरत्न देकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के सबसे बड़े
सम्मान के साथ न्याय किया। इसके साथ ही जन-जन में यह
विश्वास जगा कि भारत में कृतत्व को प्रणाम किया जाता है। इतना
ही नहीं दिल्ली मे 'सदैव अटल' समाधि बनाकर संपूर्ण राष्ट्र की ओर
से जो श्रद्धांजलि दी गई वह सदैव स्मरणीय रहेगा।
प्रभात झा (पूर्व राज्य सभा सांसद)
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