आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती की प्रेरक कथाएं |
सह्रदयी महर्षि दयानन्द |
महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती जी अपने छात्रों और सहयोगियों से सह्रदयता और दयालुता पूर्ण व्यवहार करते थे | पंडित कृष्णराम इच्छाराम महर्षि जी के समीप रहकर विध्या अध्यन करते थे | इसके लिए वे महर्षि स्वामी दयानन्द जी के लेखन -कार्य में सहायता करते थे | एक दिन उन्होंने ज्वर से ग्रस्त हो शय्या पकड़ ली | महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती जी को जब यह जानकारी मिली तो तुरंत वे कृष्णराम से मिले | इस समय उनका सारा शरीर दर्द कर रहा था | महर्षि स्वामी दयानद सरस्वती जी उसका सर दबाने बैठ गए | पंडित कृष्णराम इच्छाराम ने इसका विरोध किया -“महाराज आप यह क्या कर रहे है | नहीं -नहीं , आप ऐसा न करे | मुझे पाप का भागी न बनाये | ” महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने स्नेह पूर्वक कहा -“इसमें कोई पाप नहीं लगता | हमे एक दुसरे की सहायता करनी ही चाहिए | सेवाकार्य से कभी विरत नहीं होना चाहिए | ऐसा करने से अन्यों को सेवा करने की प्रेरणा मिलती है |
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